वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का क्या महत्व है ? कैसे इस ज्योतिर्लिंग का हुआ नामकरण ? रावण से क्या था इसका सम्बन्ध ?

हमारे देश में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है वैधनाथ ज्योतिर्लिंग... इस ज्योतिर्लिंग का अपना विशेष महत्व है।

यह बहुत प्रसिद्ध शिव निवास भारत के झारखंड राज्य के देवघर में स्थित है। मुख्य मंदिर में 21 उप मंदिर हैं और एक बाबा बैद्यनाथ मंदिर है जिसमें मुख्य गर्भगृह के केंद्र में ज्योतिर्लिंग है।

कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता हैं।

आज हम बताने जा रहे हैं इसके नाम के पीछे का रहस्य -

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा

इस ज्योतिर्लिंग का संबंध असुरराज रावण से है। जैसा कि सर्वविदित है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था। 

एक बार वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या कर रहा था। उसने एक-एक करके अपने 9 सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया। जब वह अपना 10 वां सिर काट करके चढ़ाने जा रहा था, तभी शिव जी प्रकट हो गए। शिव जी ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए रावण से वर मांगने के लिए कहा।

रावण चाहता था कि भगवान शिव उसके साथ लंका चलकर रहें, इसीलिए उसने वरदान में कामना लिंग को मांगा। भगवान शिव मनोकामना पूरी करने की बात मान गए, परंतु उन्होंने एक शर्त भी रख दी। 

उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को कहीं रास्ते में रख दिया, तो तुम उसे दोबारा उठा नहीं पाओगे। शिव जी की इस बात को सुनकर सभी देवी-देवता चिंतित हो गए। सभी इस समस्या को दूर करने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंच गए।

भगवान विष्णु ने इस समस्या के समाधान के लिए एक लीला रची। उन्होंने वरुण देव को आचमन करने रावण के पेट में जाने का आदेश दिया। इस वजह से रावण को देवघर के पास लघुशंका लग गई। रावण को समझ नहीं आया क्या करे, तभी उसे बैजू नाम का ग्वाला दिखाई दिया। रावण ने बैजू को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने चला गया।

वरुण देव की वजह से रावण कई घंटों तक लघुशंका करता रहा। बैजू रूप में भगवान विष्णु ने मौके का फायदा उठाते हुए शिवलिंग वहीं रख दिया। वह शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। इस वजह से इस जगह का नाम बैजनाथ धाम पड़ गया। हालांकि इसे रावणेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है।

बैद्यनाथ नाम यह भी है मान्यता -


कहा जाता है कि शिवपुराण के शक्ति खंड में इस बात का उल्लेख है कि माता सती के शरीर के 52 खंडों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने सभी जगहों पर भैरव को स्थापित किया था. देवघर में माता का हृदय गिरा था. इसलिए इसे हृदय पीठ या शक्ति पीठ भी कहते हैं. माता के हृदय की रक्षा के लिए भगवान शिव ने यहां जिस भैरव को स्थापित किया था, उनका नाम बैद्यनाथ था. इसलिए जब रावण शिवलिंग को लेकर यहां पहुंचा, तो भगवान ब्रह्मा और बिष्णु ने भैरव के नाम पर उस शिवलिंग का नाम बैद्यनाथ रख दिया.

यहां के नामकरण के पीछे एक और मान्यता है. त्रेतायुग में बैजू नाम का एक शिव भक्त था. उसकी भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि अपने नाम के आगे बैजू जोड़ लिया. इसी से यहां का नाम बैजनाथ पड़ा. कालातंर में यही बैजनाथ, बैद्यनाथ में परिवर्तित हुआ.