धरती पर ताप्ती नदी जा अवतरण कैसे हुआ था ? क्या है महत्व ? यह जानकारी आपको हैरान कर देगी

आइए पढ़ें पुराणों में ताप्तीजी की जन्म कथा : 

सूर्य पुत्री ताप्ती अखंड भारत के केंद्रबिंदु कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के प्राचीन मुलतापी, जो कि वर्तमान में मुलताई कहा जाता है, नगर स्थित तालाब से निकलकर समीप के गौमुख से एक सूक्ष्म धार के रूप में बहती हुई गुजरात राज्य के सूरत के पास अरब सागर में समाहित हो जाती है।

पुराणों में सूर्य भगवान की पुत्री तापी, जो ताप्ती कहलाईं, ऐसा कहा जाता है कि भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था।

ताप्ती जयंती आषाढ़ शुक्ल की सप्तमी को मनाई जाती है।

भविष्य पुराण में ताप्ती महिमा के बारे में लिखा है कि सूर्य ने विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा/ संजना से विवाह किया था। संजना से उनकी 2 संतानें हुईं- कालिंदनी और यम। उस समय सूर्य अपने वर्तमान रूप में नहीं, वरन अंडाकार रूप में थे। संजना को सूर्य का ताप सहन नहीं हुआ, अत: वे अपने पति की परिचर्या अपनी दासी छाया को सौंपकर एक घोड़ी का रूप धारण कर मंदिर में तपस्या करने चली गईं। 
छाया ने संजना का रूप धारण कर काफी समय तक सूर्य की सेवा की। सूर्य से छाया को शनिचर और ताप्ती नामक 2 संतानें हुईं। इसके अलावा सूर्य की 1 और पुत्री सावित्री भी थीं। सूर्य ने अपनी पुत्री को यह आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी।

ताप्ती में भाई-बहनों के स्नान का महत्व

सूर्यपुत्री ताप्ती को उसके भाई शनिचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती और यमुनाजी में स्नान करेगा, उनकी कभी भी अकाल मौत नहीं होगी।

मां ताप्ती का महत्व : राजा दशरथ के शब्दभेदी से श्रवण कुमार की जल भरते समय अकाल मृत्यु हो गई थी। पुत्र की मौत से दुखी श्रवण कुमार के माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया था कि उसकी भी मृत्यु पुत्रमोह में होगी। राम के वनवास के बाद राजा दशरथ भी पुत्रमोह में मृत्यु को प्राप्त कर गए लेकिन उन्हें जो हत्या का श्राप मिला था जिसके चलते उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकी।

भगवान राम ने किया था पिता का तर्पण

भगवान राम ने मां आदिगंगा ताप्ती के तट पर अपने अनुज लक्ष्मण एवं माता सीता की उपस्थिति में अपने पितरों एवं अपने पिता का तर्पण कार्य ताप्ती नदी में किया था।

भगवान श्रीराम ने बारह लिंग नामक स्थान पर रुककर यहां पर भगवान विश्वकर्मा की मदद से 12 लिंगों की आकृति ताप्ती के तट पर स्थित चट्टानों पर उकेरकर उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की थी। बारहलिंग में आज भी ताप्ती स्नानागार जैसे कई ऐसे स्थान हैं, जो कि भगवान श्रीराम एवं माता सीता के यहां पर मौजूदगी के प्रमाण देते हैं। 

दुर्वासा ऋषि को मिला स्वर्ग का मार्ग

एक अन्य कथा के अनुसार दुर्वासा ऋषि ने देवलघाट नामक स्थान पर बीच ताप्ती नदी में स्थित एक चट्टान के नीचे से बने सुरंग द्वार से स्वर्ग को प्रस्थान किया था।

धार्मिक मान्यता है कि ताप्ती नदी दुनिया की एकमात्र नदी है, जो हड्डियों को गला देती है। इस नदी की धारा में दीपदान, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है। 

सूर्यपुत्री मां ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख 2 नदियों में से एक है। 

ताप्ती ताप-पाप-श्राप और त्रास को हरने वाली आदिगंगा कही जाती है। स्वयं भगवान सूर्यनारायण ने स्वयं के ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती पर भेजा था।

यह सतपुड़ा पठार पर स्थित मुलताई के तालाब से उत्पन्न हुई है लेकिन इसका मुख्य जलस्रोत मुलताई के उत्तर में 21 अक्षांश व 48 अक्षांश, पूर्व में 78 अक्षांश एवं 48 अक्षांश में स्थित 790 मीटर ऊंची पहाड़ी है जिसे प्राचीनकाल में ऋषि गिरि पर्वत कहा जाता था, जो बाद में 'नारद टेकड़ी' कहा जाने लगा।

महर्षि नारद की तपस्या स्थली

इस स्थान पर स्वयं ऋषि नारद ने घोर तपस्या की थी।  मुलताई का नारद कुंड वही स्थान है, जहां ताप्ती पुराण चोरी करने के बाद नारद को शारीरिक व्याधि "कोढ़" हो गई थी, यहीं स्नान के बाद उन्हें कोढ़ से मुक्ति मिली थी।

ताप्ती नदी सतपुड़ा की पहाड़ियों एवं चिखलदरा की घाटियों को चीरती हुई महाखड्ड में बहती है। 201 किलोमीटर अपने मुख्य जलस्रोत से बहने के बाद ताप्ती पूर्वी निमाड़ में पहुंचती है। पूर्वी निमाड़ में भी 48 किलोमीटर संकरी घाटियों का सीना चीरती ताप्ती 242 किलोमीटर का संकरा रास्ता खानदेश का तय करने के बाद 129 किलोमीटर पहाड़ी जंगली रास्तों से कच्छ क्षेत्र में प्रवेश करती है।

ताप्ती वैसे तो मात्र स्मरण मात्र से ही अपने भक्त पर मेहरबान हो जाती है लेकिन किसी ने उसके अस्तित्व को नकारने की कुचेष्टा की तो वे फिर शनिदेव की बहन हैं और कब किसकी साढ़े साती कर दे, कहा नहीं जा सकता। ताप्ती नदी के किनारे अनेक सभ्यताओं ने जन्म लिया और वे विलुप्त हो गईं।

स्मरण मात्र से मोक्ष

पुराणों में लिखा है कि भगवान जटाशंकर भोलेनाथ की जटा से निकली भगीरथी गंगा मैया में 100 बार स्नान का, देवाधिदेव महादेव के नेत्रों से निकली 1 बूंद से जन्मीं शिव पुत्री कही जाने वाली मां नर्मदा के दर्शन का तथा मां ताप्ती के नाम का स्मरण एक समान पुण्य एवं लाभ है। 

● थाईलैंड की तापी नदी का नाम भी अगस्त 1915 में भारत की इसी ताप्ती नदी के नाम पर ही रखा गया है

● महाभारत, स्कंद पुराण एवं भविष्य पुराण में ताप्ती नदी की महिमा कई स्थानों पर बतायी गई है

● ताप्ती नदी का विवाह संवरण नामक राजा के साथ हुआ था जो कि वरुण देवता के अवतार थे

● बुरहानपुर जिले में ताप्ती नदी देड़तलाई, तुकईथड़, पलासुर, सीवल, नावथा, लिंगा, नागझिरी, पिपलघाट, राजघाट, सतियारा घाट, बोहरड़ा, हतनूर, नाचनखेड़ा, पातोंडी से होकर अंतुर्ली महाराष्ट्र की ओर जाती है।