आखिर क्यों हम गणपति जी की विदाई ,विर्सजन के रूप में ही करते हैं और इसके पीछे की कहानी क्या है?

गणेश विसर्जन की परंपरा

गणेश चतुर्थी के आखिरी दिन गणेश जी का विसर्जन की परंपरा है। 10 दिवसीय उत्सव के अतिंम दिन को अनंत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि 'विसर्जन' शब्द से ही पता चल रहा है कि इस दिन भगवान गणपति की मूर्ति का विसर्जन किसी नदी,समुद्र या जल निकाय में किया जाता है। त्योहार के पहले दिन, भक्त अपने घरों, सार्वजनिक स्थानों और कार्यालयों में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करने के साथ गणेश चतुर्थी की शुरुआत करते हैं और अंतिम दिन भक्त भगवान की मूर्तियों को विसर्जन करते हैं।

गणेश विसर्जन की कथा के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। ऐसा माना जाता है कि इस त्योहार के आखिरी दिन भगवान गणेश अपने माता-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर लौटते हैं। गणेश चतुर्थी का उत्सव जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र के महत्व को बताता है। गणेश, जिन्हें नई शुरुआत के भगवान के रूप में भी जाना जाता है, बाधाओं के निवारण के रूप में भी पूजा जाता है। इसलिए जब गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन के लिए बाहर ले जाया जाता है तो वह अपने साथ घर की विभिन्न बाधाओं को भी दूर कर देते है।

महाभारत से जुड़ी है कहानी

पुराणों के अनुसार, श्री वेद व्यास जी ने गणपति जी को गणेश चतुर्थी से महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी। गणपति जी उसे लिख रहे थे। इस दौरान व्यास जी आंख बंद लगातार 10 दिनों तक कथा सुनाते रहे और गणपति जी लिखते गए। 10 दिनों बाद जब व्यास जी आंखे खोली तो उस समय गणपित के शरीर का तापमान काफी ज्यादा बढ़ गया थ, जिसके कारण व्यास जी ने शरीर को ठंडा करने जल में डुबकी लगवाई। तभी से मान् ;यता है कि 10वें दिन गणेश जी को शीतल के लिए उनका विसर्जन किया जाता है।