अमर सती -मेवाड़ की हाड़ी रानी कर्मवती


1535 ईस्वी का दृष्टांत है. मेवाड़ की हाड़ी रानी कर्मवती अपने पति राणा सांगा की मृत्यु के पश्चात अपने पुत्र विक्रमादित्य की संरक्षिका के रूप में गुजरात के शासक बहादुर शाह के विरुद्ध संघर्षरत थी. 
ऐतिहासिक ग्रंथ वीर विनोद में उल्लेखित कथानक के अनुसार बहादुर शाह ने चित्तौड़ दुर्ग को विजित करने के उद्देश्य से पांडन पोल ,सूरजपोल व लाखोटा बारी की ओर से आक्रमण किया था. 
अंतत: दुर्ग के विशाल पट खोल दिए गए ओर केसरिया का आह्वान करते हुए असंख्य वीर देवलिया प्रताप गढ के रावत बाघ सिंह के नेतृत्व में वीर गति को प्राप्त हुए थे. 
युद्ध के अंतिम क्षणों में हाड़ी रानी कर्मवती के नेतृत्व में असंख्य वीरांगनाओं ने सतीत्व रक्षार्थ अग्नि में प्रवेश करके अपनी प्राणाहूति दी थी, जो मेवाड़ के इतिहास में द्वितीय साका के रूप में विख्यात है.
जो भी हो, चित्तौड़ गढ के द्वितीय साका में हाड़ी रानी कर्मवती ने मेवाड़ की अस्मिता की रक्षार्थ जौहर का जो अनुष्ठान किया था, वह यशोगाथा आज भी उन्हें अमरत्व प्रदान किए हुए है.