जैनमुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने 'सल्लेखना' के जरिये देह त्यागी

प्रसिद्ध जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में डोगरगढ़ के चंदगिरी में बीती रात्रि शरीर त्याग दिया और ब्रम्हलीन हो गए।
जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज राजधानी रायपुर से लगभग 100 किमी दूर डोगरगढ़ के चंदगिरी में पिछले छह माह से रूके हुए थे।वह काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे।

तीन दिनों से उऩ्होने अन्न जल त्याग दिया था और उपवास पर थे। बयान के अनुसार, आचार्य विद्यासागर महाराज ने देर रात 2:35 बजे 'चंद्रगिरि तीर्थ' में 'सल्लेखना' करके देह त्याग दी।
आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में आचार्य ज्ञान सागर महाराज से दीक्षा ली थी। 

आचार्य ज्ञान सागर महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था। आचार्य श्री का अधिकांश समय बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ, वे वहां के जैन समाज की भक्ति और समर्पण से बहुत प्रभावित थे। आचार्य श्री ने लगभग 350 दीक्षाएं दी है, जिनमें शिक्षित युवाओं की संख्या अधिक है। 

संघस्त निर्यापक मुनि समता सागर महाराज ने कहा कि यह धर्म संकट की घड़ी है पूरे विश्व को अपूरणीय क्षति हुई है एक कालखंड थम गया है हर आंख में आंसू है, देह का वियोग हुआ है। गुरुवर आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। 
वह हिन्दी और कन्नड सहित कई भाषाओं के जानकार थे।वह जैन समाज के शीर्षस्थ मुनियों में थे।
देश-दुनिया को अपने ओजस्वी ज्ञान से पल्लवित करने वाले आचार्य विद्यासागर जी महाराज को देश और समाज के लिए किए गए उल्लेखनीय कार्य, उनके त्याग और तपस्या के लिए युगों-युगों तक स्मरण किया जाएगा।
मध्य प्रदेश शासन द्वारा महामुनिराज के निधन पर आज आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है।