आपातकाल की कहानी : मीसाबंदी की ज़ुबानी : शख्सियत श्री अरुण शेंडे

बुरहानपुर - 25 जून 1975 में लगाया गया आपातकाल शायद ही कोई भूल पाया हो, इस दौरान लगाए गए मीसा कानून के तहत विपक्ष के तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद तक शामिल थे.

इस कानून का इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया. 

आपातकाल के वक्त जेलों में मीसाबंदियों की बाढ़ सी आ गई थी. नागरिक अधिकार पहले ही खत्म किए जा चुके थे और फिर इस कानून के जरिए सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया गया, उनकी संपत्ति छीनी गई. बदलाव करके इस कानून को इतना कड़ा कर दिया गया कि न्यायपालिका में बंदियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं थी. कई बंदी तो ऐसे भी थे जो पूरे 21 महीने के आपातकाल के दौरान जेल में ही कैद रहे.

ऐसे ही बुरहानपुर के एक शक़्स जो पूरे समय जेल में रहे उनका नाम है - अधिवक्ता श्री अरुण शेंडे 

मेडिकल संसार के प्रधान संपादक डॉ. मनोज अग्रवाल से बातचीत में श्री अरुण शेंडे जी ने बताया कि वह उस समय बुरहानपुर जनसंघ के अध्यक्ष थे और बुरहानपुर के पहले और एकमात्र शख्स थे जो पूरे आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे। 

उन्हें 26 जून 1975 को गिरफ्तार किया गया और 14 फरवरी 1977 को छोड़ा गया यानी पूरे 19 महीने 14 दिन तक इंदौर की सेंट्रल जेल में रखा गया। दो दिवाली उनकी जेल में ही मनी।

जबकि उनके विवाह को उस समय सिर्फ 3 महीने ही हुए थे। उनके साथ बाद में श्री हाथीवाला और परमानन्द जी गोविंदजीवाला को भी कुछ समय के लिए उनके साथ रखा गया था।

आज भी जब श्री शेंडे उस वक़्त को याद करते हैं तो उनको वो सारे दृश्य याद आ जाते हैं कि किस प्रकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों का दमन किया गया था।

असंख्य सत्याग्रहियों को रातों रात जेल की कालकोठरी में कैद कर प्रेस पर ताले जड़ दिए। नागरिकों के मौलिक अधिकार छीनकर संसद व न्यायालय को मूकदर्शक बना दिया।’’

आज जब चीन हमारे क्षेत्र को हथियाने के मंसूबे पाल रहा है उस पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि चीन कभी अपने नापाक इरादों में सफल नहीं हो पायेगा,ये 1962 का नहीं बल्कि 2023 का बदला हुआ भारत है जो मुंह तोड़ जवाब दे सकता है।

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