हम आज स्वतंत्र भारत के पुरोधा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 165 वीं जयंती मनाने जा रहे हैं.
वे पहले नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश हकूमत के सामने सर्वप्रथम पूर्ण स्वराज की मांग की थी. उन्होंने नारा बुलंद किया कि स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा.
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
बाल गंगाधर तिलक के पिता का नाम श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक व माता का नाम पार्वती बाई था। साल 1871 में बालगंगाधर तिलक की शादी तापीबाई से हुई जिन्हें बाद में सत्यभामाबाई नाम से जाना गया।
वह एक स्वतंत्रता सेनानी तो थे ही लेकिन इसी के साथ ही वह भारतीय समाज सुधारक, शिक्षक, वकील और भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान के ज्ञाता भी थे और इसी के चलते उन्हें बहुत प्रमुख माना जाता था और उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि मिली।
देशवासियों को शिक्षित करने के लिये उन्होंने कई शिक्षा केंद्रों की स्थापना की। उस दौर में देश के लोगों में आजादी की अलख जगाने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने 'मराठा दर्पण' और 'केसरी' नाम से दो मराठी अखबार निकाले जो बहुत लोकप्रिय हुए, जिनके पाठकों की संख्या बहुत थी।
इन अखबारों में तिलक ने अंग्रेजों की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी हीन भावना पर अपने विचार खुलकर व्यक्त किए। इसी के साथ उन्होंने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार के लिए एक बड़ा देशव्यापी आंदोलन चलाया।
चार मुख्य हथियार -
बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए चार हथियारों का इस्तेमाल करते थे. ये हथियार थे. स्वदेशी, स्वराज्य, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा थे।
पेंसिल से लिख डाली गीता रहस्य -
1897 में उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया और 6 साल की कैद हुई. अपनी इसी जेल यात्रा में ही तिलक जी ने पेंसिल से ही 'गीता रहस्य' नामक ग्रन्थ लिखा, जो आज भी गीता पर एक श्रेष्ठ टीका मानी जाती है. इसके माध्यम से उन्होंने देश को कर्मयोग की प्रेरणा दी.
आरम्भ किया गणेशोत्सव -
जेल से छूटने के बाद उन्होंने दो उत्सव आरंभ किये. एक शिवाजी महाराज उत्सव और दूसरा गणेशोत्सव.
तिलक जी ने इन दोनों उत्सवों का आरंभ मनौवैज्ञानिक तरीके से किया. समाज का जो वर्ग धार्मिक भावना वाला था, वह गणेशोत्सव से जुड़ा और जो सांस्कृतिक और सामाजिक रुझान वाला वर्ग था वह शिवाजी महाराज उत्सव से जुड़ा।
बुरहानपुर से था जुड़ाव -
तिलक 1917 में बुरहानपुर आये थे और स्थानीय मराठी समाज ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग स्वरुप 3,000 रुपये का दान दिया था, फिर तिलक ने यह राशि यहां सामुदायिक भवन के निर्माण के लिये दान कर दी थी।
उस क्षेत्र पर जहां तिलक आये थे उनके नाम पर तिलक हॉल का निर्माण कराया गया और तीन साल बाद गणेश उत्सव की नियमित तौर पर शुरुआत की गई।
अंग्रेजी हुकूमत को नाको चने चबवाने वाले इस प्रखर स्वतंत्रता सेनानी को आजादी की सुबह नसीब नहीं हुई, लेकिन आजादी के दीवानों के लिए वे आज भी प्रखर प्रेरक माने जाते हैं. 1 अगस्त 1920 में मुबंई में उनका देहांत हो गया.