क्या है ? नरक चतुर्दशी, काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी : आइये जानते हैं

नरक चतुर्दशी

* नरक चतुर्दशी को काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है
* यह दीपावली के एक दिन पहली आती है इसलिए इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है
* यह हिंदू कैलेंडर अश्विन महीने की विक्रम संवत्में और कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदहवें दिन) को मनाया जाता है
* यह दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है
* इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और हनुमान जी की पूजा की जाती है
* हिन्दू साहित्य बताते हैं कि असुर (राक्षस) नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था
* इसी दिन हनुमान जयंती भी मनाया जाता है शास्त्रों में उल्लेख है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार की अर्द्घ रात्रि में देवी अंजनि के उदर से हनुमान जन्मे थे
* यह दिन सुबहधार्मिक अनुष्ठान, उत्सव और उल्हास के साथ मनाया जाता है
* कहा जाता है कि इस दिन प्रातःकाल सूर्य के उगने से पहले जागकर अभ्यंग स्नान करना लाभदायक होता है और जो लोग इस दिन स्नान करते हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और साथ में ही उसका सौन्दर्य भी बढ़ जाता है
* इस दिन शाम के समय यमराज जी की पूजा करने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है
* छोटी दिवाली यानि नरक चतुर्दशी वाले दिन घर के बाहर दीया जलाकर यमराज की पूजा की जाती है
* अमूमन छोटी दिवाली अमावस्या की रात को पड़ती है और अमावस्या तिथि के स्वामी यमराज होते हैं अमावस्या की रात चांद नहीं दिखाई पड़ता है और चांद ना निकलने की वजह से कही भटक ना जाएं इसके लिए एक बड़ा दीपक घर के मुख्य द्वार पर जलाया जाता है।
नरक चतुर्दशी के दिन भूलकर भी किसी जीव को न मारें। इस दिन यमराज की पूजा करने के परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज क्रोधित हो जाते हैं।
इस दिन एक पात्र में तिल वाला जल भरें और दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके यमराज का तर्पण करें।
* दीपक जलाने की विधि
> घर के सबसे बड़े सदस्य को एक बड़ा दीया जलाना चाहिए
> इस दीये को पूरे घर में घुमाएं
> घर से बाहर जाकर दूर इस दीये को रख आएं
> घर के दूसरे सदस्य घर के अंदर ही रहें और इस दीपक को न देखें
* इस दिन कड़वा फल तोड़ने का भी रिवाज होता है और कहा जाता है कि इस फल को तोड़ना नरकासुर की हार का प्रतीक होता है
* छोटी दीवाली के दिन घर के नरक यानी गंदगी को साफ किया जाता है। जहां सुंदर और स्वच्छ प्रवास होता है, वहां लक्ष्मी जी अपने कुल के साथ आगमन करती हैं।