पौराणिक कथाओं के अनुसार
एक बार भगवान गणेश तपस्या में बैठे हुए थे. तभी वहां पास से तुलसी जी गुजर रहीं थीं. गणेश जी को देखकर तुलसी जी उनपर मोहित हो गईं और उन्होंने गणेशजी के सामने विवाह प्रस्ताव रख दिया, लेकिन गणेशजी ने यह कहकर उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि वे ब्रहमचारी हैं. इस बात से तुलसी जी रुष्ट हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दिया की उनके एक नहीं दो-दो विवाह होगें.
इसी तरह एक अन्य पौराणिक कथा में वर्णन मिलता है कि गणेश जी की बनावट और उनके गज के चेहरे के चलते कोई उनसे विवाह करने को तैयार नहीं था. जिसके कारण गणेश जी नाराज हो गए और दूसरे देवताओं की शादी में विघ्न डालने लगे. तब सभी देवता परेशान होकर ब्रहमा जी के पास पहूंचे. ब्रहमा जी ने समस्या को सुलझाने और गणेश जी को मनाने के लिए अपनी योगशक्ति से दो कन्याओं रिद्धि और सिद्धि को जन्म दिया. ये दोनों ब्रहमाजी की मानस पुत्रियां थी. इन दोनों को लेकर ब्रहमा जी गणेश जी के पास पहुंचे और दोनों को शिक्षा देने की बात कही. ब्रहमा जी की आज्ञा पाकर गणेश जी दोनों को शिक्षा देने लगे.
जब गणेश जी के पास किसी के विवाह की सूचना आती तब रिद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटका देतीं और विवाह आसानी से पूर्ण हो जाता. कुछ समय बात गणेश जी को इस बात का आभास हो गया कि सभी के विवाह बिना किसी विध्न के संपन्न हो रहे हैं, तो वे रिद्धि और सिद्धि पर क्रोधित हो गए और उन्हे श्राप देने लगे, तभी वहां ब्रहमाजी आ गए और गणेश जी को ऐसा करने से रोका और रिद्धि-सिद्धि से विवाह करने को कहा गणेश जी इस बात को मान गए और इस तरह गणेशजी के दो विवाह संपन्न हुए